भोजपुरियन के बतकुच्चन करे खातिर खुलल मंच, जाहां रउवा घरउ आ राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कौनो मुद्दा पर आपन बात कहे आ ओह पर बहस करे खातिर पूरा आजाद बानी. उबीछ के करीं सभे उघटा पइचि आ दिहीं-लिहीं सभे जमि के ओरहन

गुरुवार, 4 सितंबर 2014

प्रथम मास असाढि सखि हो, गरज गरज के सुनाय।
सामी के अईसन कठिन जियरा, मास असाढ नहि आय॥
सावन रिमझिम बुनवा बरिसे, पियवा भिजेला परदेस।
पिया पिया कहि रटेले कामिनि, जंगल बोलेला मोर॥
भादो रइनी भयावन सखि हो, चारु ओर बरसेला धार।
चकवी त चारु ओर मोर बोले दादुर सबद सुनाई॥
कुवार ए सखि कुँवर बिदेश गईले, तीनि निसान।
सीर सेनुर, नयन काजर, जोबन जी के काल॥
कातिक ए सखी कतकि लगतु है, सब सखि गंगा नहाय।
सब सखी पहिने पाट पीतम्बर, हम धनि लुगरी पुरान॥
अगहन ए सखी गवना करवले, तब सामी गईले परदेस।
जब से गईले सखि चिठियो ना भेजले,तनिको खबरियो ना लेस॥
पुस ए सखि फसे फुसारे गईले, हम धनि बानि अकेली। 
सुन मन्दिलबा रतियो ना बीते, कब दोनि होईहे बिहान॥
माघ ए सखि जाडा लगतु है, हरि बिनु जाडो न जाई।
हरि मोरा रहिते त गोद मे सोबइते, असर ना करिते जाड॥
फागुन ए सखि फगुआ मचतु है, सब सखि खेलत फाग।
खेलत होली लोग करेला बोली , दगधत सकल शरीर॥
चैत मास उदास सखि हो एहि मासे हरि मोरे जाई। 
हम अभागिनि कालिनि साँपिनि, अवेला समय बिताय॥
बइसाख ए सखि उखम लागे, तन मे से ढुरेला नीर॥
का कहोँ आहि जोगनिया के, हरिजी के राखे ले लोभाई॥
जेठ मास सखि लुक लागे सर सर चलेला समीर।
अबहुँ ना सामी घरवा गवटेला, ओकरा अंखियो ना नीर॥ 
कविता कोश के वेबसाइट पर भोजपुरी लोकगीतन के संग्रह देखि के मन जुड़ा हो गइल।
2008 में एह ब्लॉग के एह मकसद से शुरू कइले रहनि की फुरसत में भोजपुरिया बिरादरी संगे रूबरू होखल जाई। जमके बतकुचन होई। कई महीना तक सबकुछ ठीकठाक चलल, ठीहा पर लोगबाग के ठीकठाक जुटाऩो भइल,   भोजपुरी पंचायत में जमके ओरहन, उघटा पइचिओ भइल, लेकिन नून-तेल-लकड़ी के चक्कर में, रोजमर्रा के भाग दौड़ में कुछ दिन बाद सबकुछ थथम गईल। जोश ठंडा पड़ि गइल।एहि बीच काशी पत्रकार संघ अध्यक्ष केडीएन भइया (फोटो में कृष्णदेव नारायण राय भइया भऊजी संगे ) के एह घरी भोजपुरिया खातिन मोह जागि गइल बा। रोज फेसबुक  पर उहांके दरकचत बानी। उहां के बगइचा चरत देख फेरु ओरहन के याद आ गइल। पुरनका सब पोस्ट हटा के उहें से फेरू एगो नया शुरुआत करत बानी। भरोसा बा चलल जाई एहि बेरि के संगे-संगे कुछ दूर। एहि घरि बड़ा चर्चा बा बनारस के क्वोटा शहर बनावे के सपना के। एह पर पत्रकारपुरम बनारस में हमरा घरे बतकुचन होत रहे। ओहमे सुरेश सिंह जी आ जगधारी जी भी मौजूद रहनी। सुरेश भइया के कहनाम रहे कि बनारस के इतिहास कई हजार साल पुरान बा। ओकरा संगे क्वोटा जइसन शहर के तुलना कइसे हो सकेला।  ईसा आ गौतम बुद्ध से भी पहिले के प्रमाण मिलेला। कवनो जमाना में दुनिया के बड़का बड़का लोग एहि शहर में आई के देश आ दुनिया के नया दिशा देत रहल हां। एहि ममिला में भगवान बुद्ध आ महावीर तक के नाम लिहल जा सकेला। वइसे काशी अध्यात्म खातिन पहचानल जाले। विकास के नाम पर विनाश से बाकी दुनिया अगुता गइल बा। ओने के लोग शांति के तलाश में भारत की ओर देखत बाड़न। कहीं अइसन मत होखे कि उल्टे क्वोटा बनारस के रंग में रंग जाए। अव आगे पढीं सभे केडीएन भइया के राय
लरिकाई क कई गो बात एकट्ठे याद आवे लागल बा। गांवे बढ़ई से कहिके बाबू जी हमके एगो लकड़ी क गाड़ी बनवा देहलन. चार गो पहिया, ओपर पटरा जड़ा गइल. एगो रसरी बान्हिके नगीना खींचे, अउर हम पटरापर बिछौना पसार के बइठ जाईं. दुआर से बगइचा ले नगीना घुमावें मो खुब मजा लेईं। बनारस अइलीं ते तीनपहइवा देखि के ललचा गइलीं. बाबू जी उहो खरीद दिहलन। बनारस देखिलीं त लागत हमरो गउवां अइसने हरत. समय बीतल त लखनऊ गइलीं, नीमन लागत फेनू सोचिलीं, बनारसो अइसने रहत त का बात रहत। फेनू दिल्ली गइलीं. अरे बाप रे इतना बड़ शहर. अइसने बनारस रहत त केतना नीक होत। कलकत्ता देखिके त अंखिये चौन्हिया गइल. टीवी पर विदेशी शहर देखिंल त अउर लालच बढ़ल। जवन देखीं, उहे चाही. कुल्ही समोसा हमही खाइब क जिद कइलीं. त पिटाइयो गइलीं। बाबू जी कहलन-देख बेटा, दुसरा क सेन्हुर देखिके आपन लिलार ना फोरल जाला। जवन बा ओहीमें संतोष करे सीख।
आज सुन्हिली की मोदी बाबा जापान गइलें त क्वोटो शहर देखलन, आ जिदिया गइलन, बनारस अइसने बनी, काल के लन्दन जइहें, फेनू न्यूयार्क जाइहें, कब्बो वाशिंगटन जइहें, जइबें करिहं. प्रधानमन्त्री जवन हउवें, कवन घरे क पइसा लगेके बा। देखि-देखिके सनीमाके हिरोइन, आज के लरिकवन क इहे हाल बा। मेहरारू सुघरो हो, पढ़लो होय, सुशीलो हो, माई-बाबूके पुछबो करे, नोटवो कमाये। बढ़ावा जा मन, भगवान रउंवा सभेके मनोकामना पूरन करें. बाकी एगो बात बा तनि हमरा गांव क सड़कियों देख लीहअ जा. बिना दलाली खइले नीमन से बनवा देता जा त ठीके रहत......